बुधवार, 2 सितंबर 2009
मदनलाल ठींगरा का बलिदान
भारतीय स्वाधिनता संग्राम के हिसाब से यह साल बहुत महत्वपूण है। सौ साल पहले महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज की रचना की थी। यह पुस्तक तब लिखी गई, जब गांधी बड़े नायक नहीं थे। इसके बाद भी उन्होंने आजादी के बाद के भारत में होने वाले शासन की कल्पना की थी। दूसरी महत्वपूरण घटना ये है कि सौ साल पहले भारतीय नौजवान मदनलाल ठीगरा ने लारड करजन को इंग्लैड में गोली मारी थी। ठींगरा भारत से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने इंग्लैड गए थे। १७ अगस्त को ठींगरा को इंग्लैंड में फांसी दी गई। उस समय ठींगरा की बहादुरी ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी थी। इस साल गांधी जी की किताब पर कुछ कायक्रम जरुर आयोजित किए गए हैं,लेकिन मदनलाल की बहादुरी पर सरकार और संगठनों की तरफ से कोई कायक्रम नहीं हुए। यह अलग बाद ही कि ठींगरा की शहादत के बाद मैडम भीकाजी कामा ने कहा था कि आजाद मुल्क में ठींगरा की तस्वीरे हर चौराहे पर होंगी। पूरी दुनिया का ध्यान अपनी शहादत से भारत की तरफ आकषित करने वाले ठींगरा की शहादत को शायद जनता ने भुला दिया है। मदनला के पिता ने भी तब अपने वीर बेटे के बलिदान को गलत करार दिया था। उन्हे को अंग्रेजों से मिलने वाली सहायता और रकम का लालच था, लेकिन भारतीय राजनेता भी सत्ता के मद में शहीदों के बलिदान को भूले बैठे हैं। अब वक्त आ गया है कि जनता अपनी तरफ से पहल करे और शहीदों को उनका सम्मान दे। जब देश में राजनेता अपना बुत लगाने में जुटे हों और सरकारे अपना प्रचार तो फिर देश का आना वाले हाल का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में युवाओं को ठींगरा की तरह की साहस करने की जरुरत है।